|| और कोई दूसरा शीर्षक नहीं है ||

सैकड़ों हैं यूँ तो मेरे पथ के दर्शक,
पर तुम्हारे जैसा पथ दर्शक नहीं है।
मेरी यह रचना तुम्हारी ही है बाबत,
और कोई दूसरा शीर्षक नहीं है l

तुम हो गंगाजल तो मैं नहरों का पानी,
मैं दीया हूँ तुम सितारा आसमानी।
कोरे पन्ने पर लिखा इक वाक्य मैं हूँ,
और तुम हो ख्यात लेखक की कहानी l

तुम अलंकारो सी हो गीतों मे मेरे,
छंद कोई तुम बिना रोचक नहीं है |

हैं अंधेरी रात से गेसू तुम्हारे,
आँख जैसे मछलियों का इक युगल है |
चाल अल्हड़ हिरनियों सी है तुम्हारी
देह है या की कोई खिलता कमल है |

है पूनम का चाँद छत पर तुम खड़ी हो,
दृश्य कोई इससे आकर्षक नहीं है |

मान और वैभव बहुत मैने कमाया,
तृप्त पर मेरा हृदय ये हो न पाया l
सारे मादक तत्व भी हैं चख लिये पर,
चित्त में फिर भी न वो उन्माद छाया ll

जो तुम्हारे नेह सा आनंद देदे,
द्रव्य ऐसा कोई भी मादक नहीं है ll

✍🏻 गौरव ‘साक्षी’