|| आपके पदचाप से ||
हो गया था जो शिला सा मन विरह के शाप से,
फिर अहिल्या हो रहा है आपकी पदचाप से |
मन मरूथल में नवल अनुराग का कोपल खिला है,
व्योम में भटके हुए पंछी को नव आश्रय मिला है |
हो सुगन्धित पुष्प से ताज़ा हवा आने लगी है,
कोट पर बैठी हुई कोयल भी यूँ गाने लगी है |
जैसे शुभ संकेत कोई दे रहा आलाप से |
जो तपस्वी को मिला करता है सुख वरदान पा कर,
मृत्यु के सम्मुख खड़े व्यक्ति को जीवन दान पा कर |
लोभियों को सुख मिला करता विभव के बाद जैसा,
और हर जननी को मिलता है प्रसव के बाद जैसा |
मन ये पुलकित हो रहा है नेह पाकर आप से |
क्रन्दनो से लग रहे थे उत्सवों के नाद सारे,
और नीरस हो गए थे प्रेम के संवाद सारे |
चाँद तारे फूल भँवरे दे रहे थे त्रास मुझको,
ये जगत लगने लगा था एक कारावास मुझको |
अब ये अंतस हो रहा है मुक्त हर संताप से |
✍🏻 गौरव ‘साक्षी’