|| राम गीत ||

राम होना सहज तो नहीं है मगर,
हो सहज जो गया हो वही राम है |
पंक के मध्य भी खिलखिलाता हुआ,
हो जलज जो गया हो वही राम |

श्रम की पगडंडियों के सिवा राम ने,
दूसरा कोई भी पथ चुना ही नहीं |
इक वचन जो पिता का सुना तो कभी,
अन्य कोई कथन फिर सुना ही नहीं |

राज वैभव अनुज के लिए हर्ष से,
क्षण में तज जो गया हो वही राम है |

राज महलों से विनती नहीं की कभी,
आम जन को भी संग में मिलाते चले |
संग केवट के सरिता हुए पार तो,
बेर शबरी के जूठे भी खाते चले |

धर धरा पर मुकुट स्वर्ण का शीश पर,
मल के रज जो गया हो वही राम है |

स्वर्ण मृग की छटा जो अगर जानकी,
के हृदय को अधिक यूँ लुभाती नहीं |
है परम सत्य होता नहीं अपहरण,
जो सिया लाँघ रेखा को जाती नहीं |

सैन्य संग पार सागर सिया के लिए,
धैर्य धज जो गया हो वही राम है |

✍🏻 गौरव ‘साक्षी’