|| शिव गीत ||

सिर्फ शम्भू ही स्वयंभू हैं जहाँ में,
हर किसी का कोई न कोई जनक है |
आदि के आदि से हैं अस्तित्व में शिव,
और शिव ही अंत के भी अंत तक हैं |

दीर्घ है इतना की भीतर जग समाया,
सूक्ष्म इतना की न कोई देख पाया l
शिव से ही संसार का हर कण बना है,
शिव ने ही संसार का हर कण बनाया l

नौ ग्रहों से है बना यह सौर मण्डल,
शिव की काया के अणु का इक घटक है l

है कला, साहित्य और विज्ञान शिव से,
जन्म मृत्यु का विलक्षण ज्ञान शिव से |
शिव महादानी है देता दान सबको,
मांग लो जो चाहिए वरदान शिव से |

भगीरथ को स्वर्ग से गंगा थी लानी,
शिव कृपा से भूमी पर उतरा फलक है |

विश्व ने जब भी पियूष का स्वप्न पाला,
पहले भीतर से हलाहल ही निकाला l
सब सुधा का स्वाद चखना चाहते पर,
शिव ने ही केवल पिया है विष का प्याला l

नीलकंठेश्वर हुआ है नाम शिव का,
कालकूट पीकर हुआ नीला हलक है l

काल ने जाने किया कैसा इशारा,
है प्रलय के द्वार पर संसार सारा |
हर दिशा में भय ही भय है व्याप्त लेकिन,
चित्त मेरा जप रहा है ओमकारा |

ओमकारा मन्त्र भय का नाश करके,
देह में उत्पन्न कर देता पुलक है |

✍🏻 गौरव ‘साक्षी’