ll तब समझना हो गया है प्यार तुमको ll

फूल से लगने लगे जब ख़ार तुमको,
तब समझना हो गया है प्यार तुमको l
गीत मेरे गुनगुनाने तुम लगोगे,
और भाएंगे मेरे अशआर तुमको l

एक ही पिंजरे में हों पंछी घिरे दो,
एक ही धागे के जैसे हों सिरे दो |
झूमते गाते चले ही जा रहे हों,
एक ही रस्ते पे पागल सरफिरे दो |

एक ही पुल दो किनारे जोड़ता है,
प्रेम ज्यों इस पार से उसपार तुमको l

जुगनुओं के झुंड भी पीछे पड़े हैं,
और तारे राह को रोके खड़े है l
हैं नयन व्याकुल प्रतीक्षा में बहुत पर ,
रश्मियों के देवता ज़िद पर अड़े हैं l

अब अँधेरी रात में ही हो सकेगा,
पूर्णिमा के चाँद का दीदार तुमको l

दूरियों के दायरे जैसे घटेंगे,
लाज के घूँघट भी वैसे ही हटेंगे l
मेघ जो संदेह के छाए हुए हैं,
वक़्त के ही साथ में वो भी छटेंगे l

कल तलक जो बात अस्वीकार थी वो
बात हो जाएगी अब स्वीकार तुमको l

✍🏻 गौरव ‘साक्षी’